“होम्योपैथी देर से नहीं असर करता, ये बस आपका मिथक है”
होम्योपैथी के जनक “डॉक्टर सैमुएल हैनीमैन” की जयंती यानी 10 अप्रैल को “विश्व होम्योपैथी दिवस” के रूप में मनाया जाता है। आइए आज इस महत्वपूर्ण दिन पर होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के बारे में जानने की एक कोशिश की जाए।
होम्योपैथी एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है, जिसकी खोज जर्मन डॉक्टर सैमुएल हैनिमन के द्वारा 1796 ईस्वी में की गयी थी। यह एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जो “समरूपता के सिद्धान्त” पर आधारित है जिसके अनुसार होम्योपैथी औषधि वैसे रोगों को दूर कर सकती है जो उन औषधि से किसी स्वस्थ शरीर में उत्पन्न की जा सकती हैं।
होम्योपैथी ये दावा करती है कि यह किसी भी बीमारी को जड़ से खत्म कर सकती है क्यूंकि इसका इलाज वैसी औषधि से किया जाता है जिस औषधि में वैसी ही बीमारी के सभी लक्षण उत्पन्न करने की शक्ति हो। होम्योपैथी मेडिसिन्स का सर्वप्रथम प्रयोग स्वस्थ मनुष्य पर किया जाता है। इसके बाद उस वयक्ति में उत्पन्न हो रहे रोग लक्षणों को देखा जाता है अगर उसे किसी दवा देने के पश्चात उसमें हैजा, मलेरिआ या किसी अन्य बिमारियों के लक्षण प्रकट होते हैं तो उसी दवा की थोड़ी मात्रा किसी बीमार वयक्ति को देने से वो बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है। यही है समरूपता का सिद्धांत जिसपर होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति कार्य करती है।
विश्व में होम्योपैथी की लोकप्रियता बढ़ने के बावजूद वैज्ञानिक इसे संदेह की दृष्टि से देखते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि होम्योपैथी सिर्फ प्लैसिबो(placebo) इफैक्ट पर काम करती है। प्लैसिबो इफेक्ट बताने का एक आधार जो वैज्ञानिक बताते हैं वह है कि होम्योपैथी औषधियों को एक निर्धारित पद्धति से लगातार डाइल्यूट कर द्रवीकृत या पाउडर फॉर्म में औषधियां तैयार की जाती हैं जिसमें मूल औषध-तत्व की उपस्थिति ना के बराबर होती है और इसलिए आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिक इसे प्लैसिबो मानते हैं जबकि होम्योपैथी के चिकित्सा विज्ञानी इसे औषधि के शक्तिकरण का नाम देते हैं।
चिकित्सा विज्ञान में प्लैसिबो उसे कहते हैं जब बिना असल दवाई दिए हुए, दिखने में दवाई जैसा ही पदार्थ मरीज़ को दिया जाता है जिससे मनोवैज्ञानिक तौर पर मरीज़ बेहतर महसूस कर सकें।
होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को लेकर वैज्ञानिकों और लोगों के बीच संशय बने होने के कई कारण हैं जैसे :
1 होम्योपैथी औषधि को बनाने में सल्फर, पारा, जस्ता, टिन, सोना, चाँदी आदि का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें से कुछ जहलरीले तत्व माने जाते है।
2 पारदर्शिता की कमी। औषधि में किन चीज़ों का इस्तेमाल किया गया है इसकी जानकारी सिर्फ चिकित्सक को होती है। रोगी को इसके बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई जाती।
3 होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में अनुसंधान की कमियां। चिकित्सकों में अनुसंधान की प्रति उदासिनता देखी गई है ।
4 होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के बारे में कई लोगों का ये मानना है कि यह स्वयं से पढ़े जानेवाला विज्ञान है। जिससे हाल-फिलहाल में झोलछाप चिकित्सकों की संख्या में काफी वृद्धि हुयी है। जिनके द्वारा दी जा रही औषधि असर नहीं कर पाती और पूरी चिकित्सा पद्धति पर ही संदेह की जाने लगती है।
अब एक नज़र होम्योपैथी को लेकर लोगों के मन में बने मिथकों पर:
होम्योपैथी औषधि बहुत धीरे काम करने वाली पद्धति है जो की सिर्फ एक मिथक है। ये रोग की जटिलता पर और चिकित्सक द्वारा दिये गए सही औषधि पर निर्भर करता है। अगर रोग दीर्घकालिक प्रवृति का है तो उसके उपचार में लंबा वक्त लगेगा नहीं तो कम वक्त।
होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में चाय, कॉफी, प्याज़, लहसुन एवं खट्टे खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित होता है ये भी एक मिथक है। ऐसा रोग के लक्षणों के आधार पर ही कहा जाता है नहीं तो आप सभी चीज़ों का सेवन औषधि के साथ भी कर सकते हैं।
एक वक्त में सिर्फ एक ही दवाई ली जा सकती है। ऐसा नहीं है, रोग की तीव्रता की आधार पर एक साथ दो या तीन दवाइयां भी चलायी जा सकती हैं।
एलोपैथी मेडिसिन के साथ होम्योपैथी मेडिसिन नहीं ली जा सकती ये भी एक मिथक है। बल्कि होम्योपैथी की सबसे खास बात है कि आप डॉक्टरी परामर्श से इसका सेवन किसी भी दूसरे मेडिसिन के साथ कर सकते हैं। इससे किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट होने का खतरा नहीं होता।
होम्योपैथी में किसी भी तरह की जांच नहीं की जाती। ये भी गलत है शुरुआत में जांच की ज़रूरत नहीं होती पर रोग की जटिलता को देखते हुये जांच के बाद ही इलाज की जाती है।
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