आयुर्वेद या एलोपैथी : कौन है ज्यादा असरदार?
आयुर्वेद
तो देशी दवाओं, जिसे आम तौर पर आयुर्वेद के रूप में जाना जाता है, में इतना क्या अलग होता है? आयुर्वेद जीवन के एक अलग आयाम और समझ से पैदा होता है। आयुर्वेद प्रणाली का एक बुनियादी हिस्सा यह समझना है कि हमारे शरीर बस उसका एक ढेर हैं, जो हमने इस धरती से इकट्ठा किया है। धरती की प्रकृति और पंचभूत यानि धरती को बनाने वाले पांच तत्व इस स्थूल शरीर में व्यक्त होते हैं। अगर आप इस शरीर को सबसे असरदार और उपयोगी तरीके से रखना चाहते हैं, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप इस शरीर के साथ जो भी करें, उसका इस धरती के साथ संबंध हो।
आयुर्वेद में, हम समझते हैं कि अगर हम शरीर की पर्याप्त गहराई में जाएं, तो यह शरीर अपने आप में कोई संपूर्ण चीज नहीं है। यह एक जारी प्रक्रिया है, जिसमें वह धरती भी शामिल है, जिस पर आप चलते हैं।अगर आप बहुत गंभीर स्थिति में हैं, तो किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास जाना सही नहीं होगा। आप उसके पास तभी जाएं, जब आपके पास ठीक होने का समय हो। आपात स्थिति के लिए एलोपैथी में बेहतर व्यवस्था है।अगर इस रिश्ते को न समझा जाए, तो अंदर से काम करने वाली ये सूक्ष्म चिकित्सा प्रणालियां कारगर नहीं होतीं। पूरी प्रणाली का ध्यान रखे बिना सिर्फ उसके एक पहलू पर काम करने की कोशिश बहुत फायदेमंद नहीं होती।
एक समग्रतावादी प्रणाली का मतलब सिर्फ शरीर का संपूर्ण रूप में उपचार करना नहीं है। समग्रतावादी प्रणाली का मतलब जीवन का एक संपूर्ण रूप में उपचार करना है, जिसमें धरती, हम जो खाते हैं, जिस हवा में सांस लेते हैं, जो हम पीते हैं – सब कुछ शामिल होते हैं। इन सब चीजों का ध्यान रखे बिना, आयुर्वेद का असली लाभ नहीं दिख सकता। अगर आयुर्वेद हमारे जीवन और हमारे समाजों में एक जीवंत हकीकत बन जाता है, तो लोग देवताओं की तरह रह सकते हैं।
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